रविवार, 29 अप्रैल 2007

ये प्रयास है....को लाइन पर लाने का!

"खुल्ले में करने का शौक नहीं है हमें, पर क्या करें इंसान पर तरह तरह के प्रेशर होते हैं, आप पर प्रेशर पड़ेगा तो क्या आप रुक जाइएगा...नहीं, कन्ना (करना) पड़ेगा..ये प्रयास है पब्लिक प्लेसेज पर सू सू करने वालों को लाइन पर लाने का.." अगर आपने ये एड किसी सिनेमाघर में नहीं देखा हो तो रेडियो पर जरुर सुना होगा..और नहीं भी सुना तो क्या फर्क पड़ जाता है आप लाइन पर थोड़े ही आने वाले हैं...सचमुच प्रेशर में करना तो पड़ ही जाता है। वैसे भी इतने बड़े शहर में कहां कहां ढ़ूंढते फिरेंगे सार्वजनिक शौचालय। और अगर सार्वजनिक शौचालय मिल भी जाए तो खुल्ले एक रुपए कहां से लाएंगे आप...और एक रुपए का सिक्का हो भी तो बदबू से भरे शौचालय में 'करना' भला अच्छा लगता है क्या? आप खुद ही याद कर लीजिए जहां जहां भी आपने नजर बचाकर 'किया' है, वो जगह कितनी साफ सुथरी और खुले वातावरण के बीच रही है..और आपको इस बात की भी टेंशन नहीं रही कि जेब में एक रुपए का सिक्का है भी या नहीं। साथ ही आप एक और चीज से बच जाते हैं..याद करिए ऐसा नहीं कि आपको मालूम नहीं। क्या कहा..याद नहीं आ रहा..नहीं जनाब याद तो खूब आ रहा है पर आप बताना नहीं चाहते। चलिए ये जिल्लत हमीं उठा लेते हैं...अक्सर सड़क किनारे बने एमसीडी के पेशाबघर (याद रहे एनडीएमसी नहीं एमसीडी)में आप बेतकल्लुफी फरमाने के लिए पहुंचते हैं और काफी देर से बने 'प्रेशर' से निजात पाते हुए ज्यों ही 'चरम सुख' की हालत में पहुंचते हैं आपकी नजर ऐसे पोस्टर या पैंफलेट्स पर पड़ जाती है जिस पर किसी ना किसी बाबा या हकीम साहब की शान में कसीदे पढ़े गए होते हैं। यहां तक तो ठीक है पर उस पर लिखे कुछ अल्फाज आपको सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं.. मसलन 'अगर आप बचपन की गलती...वगैरह..वगैरह'। और आप न चाहते हुए भी या तो अपने अतीत को कुरेदकर मन को तसल्ली देने के लिए जिंदगी के उन तमाम लम्हों को याद करने में जुट जाते हैं जब आपसे गलती होते होते रह गई ( या आपको गलती करने का मौका नहीं मिल पाया ) या फिर अपनी मर्दानगी को चुनौती देने वाले उस पैंफ्लेट का क्रिया कर्म कर डालते हैं (फटे हुए पैंफ्लेट देखकर इस महान कार्य को अंजाम देने वाले की मन:स्थिति के बारे में मैं इससे बेहतर अंदाजा नहीं लगा पाया)। बहरहाल शौचालय में पेशाब करने के बाद कुछ देर के लिए ही सही पर आपका बैरी मन बेकार की चीजों की ओर कदमताल करने लगता है और देश, दुनिया और समाज के बारे में सोचते हुए जाया होने वाला आपका कीमती समय बेहद फालतू बातों (अगर आप शादीशुदा हैं तो मेरे 'बेहद फालतू' शब्द का मतलब 'बेहद जरुरी' से निकालें)पर सोचते हुए खर्च हो जाता है। हालांकि मेरा ये भी मानना है कि बहुत से लोग ऐसे शौचालयों का इस्तेमाल दरियागंज की किसी गली का पता लगाने के लिए भी करते होंगे..(भगवान उनकी आत्मा को शांति दे)। बहरहाल विषय से भटकाव के लिए क्षमा प्रार्थी हूं.. हम बात कर रहे थे शौचालय में पेशाब करने से होने वाले नुकसान की। अब एक बार अगर किसी का मन भटक गया तो सुबह से लेकर शाम तक वो न चाहते हुए भी ऐसी ही किसी बात पर चिंतन करता रहता है जो सही और गलत दोनों ही दिशाओं में हो सकता है। अगर उसका ये भटकाव सही दिशा में भी हुआ तो वो सोचता है कि आखिर लड़कियां इतने तंग कपड़े पहनती ही क्यों हैं..बलात्कार तो होगा ही। या फिर उसे लगता है कि देश में सेक्स शिक्षा नहीं दिए जाने की वजह से ही भ्रूण हत्या के मामलों में इजाफा हो रहा है..वो ये भी सोच सकता है कि देश में gays के साथ बड़ी नाइंसाफी हो रही है..आखिर इसमें उनकी क्या गलती है कि उनकी दिलचस्पी अपनी ही बिरादरी में हो गई..अपनी पैदाइश से पहले खुद की जीनोम संरचना उनके हाथ में थोड़े ही थी। ये उस इंसान की हालत है जिसका मन उस मुए पैंफ्लेट की वजह से भटकने के बाद भी सही दिशा में जाता है..अब इस बात का अंदाजा लगाना आपके लिए मुश्किल नहीं है कि अगर उसका मन गलत दिशा में जाता तो उसके मन की किवाड़ के भीतर कैसे कैसे महान विचार अपनी तशरीफ ले आते। खैर इसमें इन दोनों ही की ही कोई गलती नहीं है...गलती तो है पैंफ्लेट लगाने वाले की पर वो भी बिचारा क्या करे..उसे तो खुल्ले में ऐसे पैंफ्लेट चिपकाते हुए शर्म आती है लिहाजा उसने सार्वजनिक शौचालय या पेशाबघर को सबसे मुनासिब जगह समझा। ले देकर गलती उसकी है जिसने ये पेशाबघर बनाए...बेकार में इतने पैसे खर्च किए और कोई फायदा भी नहीं...अगर उन्होंने ये महान काम नहीं किया होता तो भला टीवी चैनल वाले एड बनाकर उन लोगों का मजाक कैसे उड़ा पाते जो खुल्ले में 'करते' हैं। समझना चाहिए उन्हें इंसान पर तरह तरह के प्रेशर होते हैं..किसी को खुल्ले में करने का शौक थोड़े ही न होता है...और क्या उन पर ये प्रेशर पड़ेगा तो नहीं 'करेंगे'? कन्ना पड़ेगा.....

2 टिप्‍पणियां:

Ragini Puri ने कहा…

काफी मजेदार लगा ये आर्टिकल...व्यंग्य के सहारे लोगों के सिविक सेन्स पर और थोड़ा प्रहार किया जाए, तो अच्छा रहेगा।

आयूषी ने कहा…

हाहाहाहा.....मुझे तो वो एड बहुत पसंद है...हाहाह....