रविवार, 22 अप्रैल 2007

कहीं गुस्ताखी तो नहीं की...?

नया नया जोश है...। अभी कल ही श्रीगणेश किया और आज फिर कुछ लिखने का जज्बा जोर मारने लगा। बहरहाल ब्लाग का ककहरा जाने बिना ही बुद्धिजीवी ब्लागर्स की दुनिया में घुसने की अनायाश चेष्टा क्या गुल खिलाएगी...थोड़ा बहुत अंदाजा तो चल गया है। बहुत साफ साफ बता दूं तो अपना ब्लाग बनाने से पहले 'वार फार न्यूज' और अपने एक मित्र पाणिनी के ब्लाग ' मुहफट' से ही रुबरू हुआ था। कुछ लोगों से समय समय पर ये जानकारी जरुर मिलती रही कि रवीश कुमार, प्रियदर्शन और कुछेक और गुमनाम लोग इस विधा में झंडे गाड़ रहे हैं। आज सुबह ही एक बार फिर पाणिनी के ब्लाग से गुजरा तो कुछ नए लिंक्स मिले और हम ब्लाग की दुनिया की सैर कर आए। मालूम नहीं ये संजोग था या मेरी नियति पर इस दौरान मैं अपने एक सहपाठी अभिषेक के ब्लाग 'जनपथ' पर जा पहुंचा और वहां जिस तरह से मित्रों के बीच प्यार मुहब्बत चल रही है उसे देखते हुए आने वाले समय में अपने ब्लाग पर आने वाली टिप्पणियों का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। ये भी पता चला कि मैं तो ब्लाग का शौक फरमाने चला था पर यहां तो लोग क्रांति करने पर तुले हुए हैं। बहरहाल अगर आप में से कोई सज्जन इसे पढ़ रहे हों तो मेरे शब्दों को अन्यथा न लें....। मजाक से इतर बात करें तो सचमुच इस विधा के पैनेपन का मुझे अंदाजा नहीं था अभिषेक, रवीश, प्रियदर्शन और पाणिनी सरीखे लोग वाकई काफी अच्छा कर रहे हैं...इनके ब्लाग का दर्शन करके इन्हें साधुवाद नहीं देना कृतघ्नता से कम नहीं होगा..अगर आपको ब्लागिंग देखने हो तो इनके ब्लाग पर जरुर जाएं। मेरे ब्लाग पर नितांत ही व्यक्तिगत संदेश और मेरे भारी भरकम 'परिचय' से आप अगर ये अंदाजा लगाना चाह रहे हों कि इस खेल का नौसिखिया हूं तो आप बिल्कुल सच सोच रहे हैं। अगर हंसी आ रही हो तो बेशक बुक्का फाड़ कर हंस लीजिए मैं बिल्कुल भी बुरा नहीं मानूंगा। लेकिन कृपा करके मेरे इन संदेशों पर कोई मारक टिप्पणी न करें.....क्योंकि अब मुझे लग रहा है कि ब्लाग की दुनिया की विशेष समझ विकसित किए बिना ही लोगों से अपना ब्लाग देखने के लिए कहना एक बड़ी गलती है। और मुझे ये स्वीकार करने में कतई कोई संकोच नहीं है कि मैंने बुद्धिजीवियों से भरी इस दुनिया में बिना तैयारी के ब्लाग बनाकर एक भारी भरकम गुस्ताखी की है। खैर अब जो होना था हो गया....आगे से कोशिश करुंगा कि कुछ संजीदा किस्म के ब्लाग लिख सकूं....वैसे भी इलाहाबाद छोड़ने के बाद से भड़ास निकालने का मौका नहीं मिला है......फिलहाल खुद को दिलासा देने कि लिए दिमाग पर काफी जोर डालकर एक शेर याद किया है , मुझे पूरा यकीन है कि आप भी मेरे लिए इस शेर से इत्तफाक रखते होंगे....नहीं रखते हों तो मुझे न बताइएगा...
" बच्चों के नन्हें हाथों को चांद सितारे छूने दो,
ये भी चार किताबें पढ़कर हम जैसे हो जाएंगे..."

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

great going, bro. welcome to blogosphere. hope u enjoy the stint :)

pragyan

Dilip K. Pandey ने कहा…

going great guns buddy...is internet diary par likhe aksharon ki kasam achha kiya hai jo bhi kiya...tumhare kalam (rather keyboard) ki parwaz sitaron se oonchi ho...amin!!!aane wale samay mein ummeed karta hoon is Internet Diary mein kuch aur panne jud jaayenge...aur hame kkuch aur achha sa padhne ka mauka milega....

rohit ने कहा…

आपका वेब पन्ना पढ़कर बहुत अच्छा लगा... बहुत दिनों बाद हिन्दी की अच्छी लाइने पढ़ी हैं वरना हिन्दी के नाम पर सिर्फ अब स्लग ऐस्टन ही रह गये हैं ...

बेनामी ने कहा…

hello