एक बेहद करीबी दोस्त ने ताने मारे कि पूरी दुनिया कितना कुछ कर रही है (ये कहते हुए उसका मतलब सिर्फ ब्लाग से था) और मैं कुछ भी नहीं कर रहा (पहले की ही तरह यहां भी कुछ भी नहीं करने का मतलब सिर्फ ब्लाग नहीं बनाने से था) । बहरहाल उकसावे में आकर हमने भी सोचा कि कुछ किया जाए...अब बताने की जरुरत नहीं है कि यहां कुछ का मतलब ब्लाग बनाने से है। लिहाजा इंटरनेट कैफे आए और कंप्यूटर देवता को प्रणाम कर गूगल की शरण में चले गए (क्योंकि किसी और से पूछने में काफी शर्म महसूस हो रही थी कि ब्लाग कैसे बनाएं) क्या मालूम पूछ लेने पर वो कह बैठता " अरे ये पीएसपीओ नहीं जानता (यहां पीएसपीओ का मतलब ब्लाग बनाने की तकनीक निकालें)। खैर ज्यादा खाक नहीं छाननी पड़ी "ब्लाग' टाइप किया और सैकड़ों लिंक्स सामने आ गए। ऐसा लग रहा था मानो एक साथ कई फेरी वाले आ खड़े हुए हों और अपने अपने सामान की तारीफ करते हुए मुझे अपना माल खरीदने के लिए मनौवल कर रहे हों। पर पांच सालों से दिल्ली में रहने की वजह से मैं भी थोड़ा बहुत " ब्रांड सेवी" हो गया हूं लिहाजा सबकी बातें अनसुनी कर दीं और ब्लागर डाट काम पर अकाउंट बना डाला। अपने पेज का रंग और बाकी तमाम दूसरी चीजें तय करते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे ब्लाग नहीं अपना अखबार निकालने जा रहा हूं। जहां पर क्या छपेगा और कैसे छपेगा सिर्फ मैं तय करुंगा। और हां ये भी तय कर लिया कि ये दुनिया का शायद पहला अखबार होगा जिस पर विज्ञापन नहीं छपेगा...। फिलहाल ब्लाग बनाने के बाद ऐसा लगा मानो अब मैं निठ्ठला नहीं रहा। तुरंत अपने उस दोस्त को फोन लगाया और विजयी भाव में कहा " अब मत कहना कि मैं कुछ नहीं कर रहा हूं।" लेकिन ब्लाग बनाकर मैं इसे भूल गया...आज नींद टूटी तो लगा कि अखबार के पन्नों पर कुछ लिखना शुरु किया जाए...बिना विज्ञापन के कोरे पन्नों पर कुछ माथापच्ची शुरु होनी चाहिए लिहाजा पिछले १५ मिनट से कुछ टाइप किए जा रहा हूं....नेट पर विचरण करने वाले भद्रजन अगर आप चाहें तो मेरे इस ब्लाग पर भी अपना बेहद कीमती कुछ समय जाया कर सकते हैं.....धन्यवाद!
शनिवार, 21 अप्रैल 2007
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