रविवार, 9 सितंबर 2007

शार्ट कट कट्स यू शार्ट, शार्ट....शार्ट

शार्ट कट कट्स यू शार्ट, शार्ट..शार्ट। बाबूजी ये जुमला अक्सर दुहराया करते हैं। पर अब काफी वक्त बीत चुका है। याद है अच्छी तरह। वो इंटरमीडिएट के दिन थे जब बाबूजी के मुहावरे पत्थर की लकीर जैसे लगते थे। ढेर सारे मुहावरे तो ऐसे थे जो मौके बेमौके याद आ जाते थे। लेकिन घर-बार छोड़ने के बाद की जिंदगी में जो कुछ देखा-सुना, महसूस किया उनसे सबसे ज्यादा आहत हुए तो वो हैं बाबूजी के मुहावरे। ऐसे मुहावरे जो शायद बने तो थे सतयुग के लिए पर स्टाक क्लियर नहीं हुआ लिहाजा आज के युग तक चले आए।
सभी जुमलों का जिक्र करुंगा तो कई एपिसोड में लिखना होगा। इसलिए आज सिर्फ एक जुमले की बात करते हैं जिस पर मुझे काफी भरोसा था। बाबूजी को पता चल जाए कि कोई इम्तहान में पास होने के लिए किताब और नोट्स पढ़ने की बजाए कुंजी या गाइड की मदद लेता है तो बरबस ही बाबूजी बोल पड़ते थे ....शार्ट कट कट्स यू शार्ट, शार्ट...। लेकिन जिंदगी में कई वाकए पेश आए जिन्होंने इस मुहावरे को जमकर ठेंगा दिखाया। मसलन इंटर की परीक्षा में ही उस लड़के को बायलोजी, केमिस्ट्री और फीजिक्स के प्रैक्टिकल में सबसे ज्यादा नंबर मिले जिसने कभी लैब के दर्शन की जहमत तक नहीं उठाई थी। उसने बस अपने दूर के विधायक मामा से कालेज के प्रिंसिपल को एक फोन करा दिया था। आजकल वो एक दूसरे इंटर कालेज में लैब इंचार्ज है।
इसके बाद जब बीए के लिए इलाहाबाद पहुंचा तो वहां भी शार्ट कट अपनाने वालों की कामयाबी ने हैरत से भर दिया। ये बताने की जरुरत नहीं है कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले 80 फीसदी छात्रों की नजर नीली बत्ती पर होती है। और जिस वक्त मैंने ग्रेजुएशन किया.. तैयारी के लिहाज से यूनिवर्सिटी सबसे बेहतर माहौल मुहैया करती थी। ना तो अटेंडेस की कोई चिंता और न ही सिलेबस की फिक्र। ज्यादातर लड़के इम्तहान शुरु होने से एक महीने पहले 10 सवाल guess कर लेते थे जिनमें से पांच का आना तय था। पास होने का सुपरहिट शार्टकट।दूसरों की बात छोड़िए जनाब...बीए में मैंने फिलासफी और हिस्ट्री की पढ़ाई तो जमकर की....क्लासेज अटेंड किए, नोट्स बनाए लेकिन दो साल में हिंदी साहित्य का एक भी लेक्चर नहीं अटेंड किया। और सच बताऊं तो नंबर उतने ही मिले जितना कि रेगुलर क्लास करने वालों को। खैर यही बात मेरे लिए परेशानी की वजह भी है। क्योंकि बहुत से मेरे साथियों ने यूनिवर्सिटी का मुंह तक नहीं देखा....और माशा अल्लाह उन्होंने नंबर भी जमकर बटोरे। ऐसे दोस्तों को यूपीएससी की गाड़ी भले ही नसीब नहीं हुई पर क्लास 3 की कई मलाईदार नौकरियों में उन्होंने अपनी जगह आखिरकार बना ही ली।लेकिन मुझे लगता रहा कि अभी तो इनकी जिंदगी शुरु ही हुई है। हो सकता है कुछ वक्त बाद उन्हें शार्ट कट का खामियाजा उठाना पड़े। ऐसी बहुत सी केस स्टडीज हैं जिन पर मैं लगातार नजर बनाए हुए हूं.....पर अभी तक तो...। इन सारे अनुभवों के बाद एक फर्क तो आया....मैं अक्सर ये जुमला बोलते बोलते रुक जाया करता था। पर इससे पूरी तरह यकीन कभी नहीं उठ पाया। कहीं न कहीं किसी कोने में ये बात कुछ इस तरह जम गई थी कि पिघलती ही नहीं थी।
खैर, जैसे-तैसे पढ़ाई लिखाई के दिन कट गए। और हम आ पहुंचे दिलवालों के शहर दिल्ली। देश के सबसे बड़े पत्रकारिता संस्थान में दाखिला लिया और सामना हुआ एक ऐसे शख्स से जिससे मिलने के बाद इस जुमले पर से बचा खुचा विश्वास एक झटके में खत्म हो गया। पत्रकारिता के बजाए अपनी ब्रांडिंग और नेटवर्किंग पर गूढ़ ज्ञान परोसने वाले गुरुजी की बात को जिंदगी में उतारने वाले मेरे कई बैचमेट आजकल बड़े ब़ड़े चैनलों में चांदी काट रहे हैं....। आलम ये है कि इस फन (शार्टकट) में माहिर बहुत से लोग महज ३ से ४ साल की नौकरी में इतनी तनखाह उठा रहे हैं जो १२ साल प्रिंट में काम करने के बाद पहुंचे वरिष्ठ पत्रकारों को भी नसीब नहीं है। एक पूरी जमात है जिसे पता है कि काम करने से ज्यादा जरुरी है काम करते हुए दिखाई देना....। मुझसे ये बात एक बेहद अजीज दोस्त ने कही थी हालांकि वो खुद ऐसे शार्ट कट मेथड्स अपनाने में नाकाम रहा है। कुल मिलाकर शार्ट कट की शान में जितना भी कहा जाए कम ही होगा।बार- बार मन करता है कि यकीन करुं कि शार्ट कट कट्स यू शार्ट, शार्ट......शार्ट लेकिन तभी एक शख्स का चेहरा याद आ जाता है जिसे ऊंची तनखाह पर चैनल में नौकरी सिर्फ इसलिए मिल गई क्योंकि उसका ब्लडग्रुप....चैनल में काम करने वाले एक आला अधिकारी की मां के ब्लडग्रुप से मैच कर गया, जो अस्पताल में भर्ती थीं। पर क्या ये शार्ट कट था.....शायद हां.....शायद नहीं.....अजी कुछ समझ में नहीं आ रहा.....।

4 टिप्‍पणियां:

Dipti ने कहा…

ये लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। लगा कि कोई है जो कुछ मेरी तरह सोचता है। मेरे लिए ये बहुत बड़ा रिलिफ है। मोहल्ले में जो पोस्ट के जरिए लड़ाई चल रही है वो मेरी समझ के बाहर है। शायह मैं वाम पंथ के बारे में कुछ नही जानती इसलिए। लेकिन जल्द ही समझने लगूगी पढ़ाई शुरु हो चुकी है।

दीप्ति।

Dipti ने कहा…

ये लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। लगा कि कोई है जो कुछ मेरी तरह सोचता है। मेरे लिए ये बहुत बड़ा रिलिफ है। मोहल्ले में जो पोस्ट के जरिए लड़ाई चल रही है वो मेरी समझ के बाहर है। शायह मैं वाम पंथ के बारे में कुछ नही जानती इसलिए। लेकिन जल्द ही समझने लगूगी पढ़ाई शुरु हो चुकी है।

दीप्ति।

Manish Kumar Mishra ने कहा…

विवेक जी,
ये जो आपने ब्लाग लिखने की शुरुआत की है, बहुत अच्छा किया है। शार्ट कट कट्स... वाला लेख तो साहब गज़ब का है। लेकिन हुजूर पत्रकारिता के सबसे बड़े संस्थान वाले गुरू जी का नाम लिखे बिना बात बनती नहीं है। गुरूजी का नाम तो बता दीजिए।

बेनामी ने कहा…

zindagi mein aisi bahut si bato ko mainey bhi face kiya hai ..par aaj bhi ek dipak jal raha hai ...ki short cut se life mein success short ho jaati hai ..